- 52 Posts
- 55 Comments
रचनाकार: कुंदन अभिनव
तुझको पाने की होड़ नहीं,खोने से तुझको डरता हूँ
तू जहाँ भी हो खुशहाल रहे,बस यही दुआ मैं करता हूँ
जब पहली बार मिली नजरें,तुझसे कॉलेज के प्रांगन में
पल भर के लिए महसूस हुआ,मानो हम-तुम थे मधुबन में
क्या शुभ दिन था वो मिलन घडी,अब उसको याद मैं करता हूँ
तू जहाँ भी हो खुशहाल रहे,बस यही दुआ मैं करता हूँ
पर अपने प्रेम की अभिव्यक्ति,कोई आसान सा काम नहीं
दो पल में बना था यह रिश्ता,यह रिश्ता कोई आम नहीं
कब तुझसे कह दूँ हाल-ए-दिल,अब इंतज़ार मैं करता हूँ
तू जहाँ भी हो खुशहाल रहे,बस यही दुआ मैं करता हूँ
तेरी आँखों की शर्मो-हया,मेरे मन को भाती थी
तू मधुर-मधुर मुस्कान लिए,मेरे सपनों में आती थी
नफरत थी मुझे जिन नींदों से,अब उनसे प्यार मैं करता हूँ
तू जहाँ भी हो खुशहाल रहे,बस यही दुआ मैं करता हूँ
जग के सारे रिश्ते नाते,सब इसी नींव पर टिकते हैं
ग़ैरों की आस करूँ कैसे,यहाँ अपने भी तो बिकते हैं
कहीं तू भी बदल न जाये कभी,इतनी से बात से डरता हूँ
तू जहाँ भी हो खुशहाल रहे,बस यही दुआ मैं करता हूँ
उम्मीदें हैं सबको सबसे,हर लोग हैं आशावान यहाँ
कुछ मोम से दिल भी रहते हैं,थोड़े दिल हैं पाषाण यहाँ
हो मोम सा ही तेरा दिल भी,रब से फ़रियाद मैं करता हूँ
तू जहाँ भी हो खुशहाल रहे,बस यही दुआ मैं करता हूँ
Read Comments