मेरी रचनाएँ
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चश्मा लगा,जूते पहन, वो खुद पे ही इठलाते हैं
ये सड़क के छाप प्रेमी प्यार को झुठलाते हैं !
मारते सीटी बहुत हैं, लड़कियों को देख कर
कैमरे के सामने जाने से भी शर्माते हैं !
पेट भरता है न इनका,घर की रोटी-दाल से
घर के बाहर लड़कियों की सैंडिलें भी खाते हैं !
क्लास से मतलब नहीं,ये जाते बस कैंटीन हैं
जेब में पैसे नहीं ,बस नाम में लिखवाते हैं !
लड़कियों को छेड़ना और बातें करना शौक है
इम्प्रेसन भी हैं बनाते , जेब भी लुटवाते हैं !
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