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ये धरती सूखती है,तब उधर बरसात आती है

मेरी रचनाएँ
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ये धरती सूखती है,तब उधर बरसात आती है
सिहर जाता हूँ मैं जब-जब भी उनकी बात आती है

मुझे हैरत है,रातों को वो कैसे नींद लेते हैं,
यहाँ हर रात ‘इनके’ रोने की आवाज़ आती है

ठहर कर इनके घर देखो तो कितना चैन मिलता है,
मुझे उनकी हवेली में ग़रीबी याद आती है

परेशाँ हो गया हूँ अब मैं उनके महफिलों से भी,
कि अब गाँवों कि चौपालों कि बातें याद आती है

ज़ुबां खामोश थे उसके वो आँखों से बताती थी,
मुझे उस गाँव की बच्ची की बातें याद आती है

ग़रीबों के घरों की अब मरम्मत कौन करता है,
हवेली की हरेक ईंटों से ये आवाज़ आती है

बहुत ही तंग आया हूँ मैं अपनों की शराफ़त से,
न जाने आज क्यूँ ग़ैरों की गाली याद आती है

शिक़ायत मत करो मुझसे कि मेरा तल्ख़ लहज़ा है,
नमक कुछ देर रखो तो नमीं भी साथ आती है

क्यूँ ‘उनका’ नाम लेने से तुझे परहेज़ है ‘कुंदन’,
कि जिनको याद तेरी पांच सालों बाद आती है

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