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ख़ता क्या है मेरी, दिलवर ज़रा ये तो बता देना

मेरी रचनाएँ
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ख़ता क्या है मेरी, दिलवर ज़रा ये तो बता देना
जो फिर आये तेरे दिल में वो तू मुझको सजा देना

इससे पहले कोई तोहमत मेरे सर पे लगा दे तू
ज़रा एक बार अपनी तू मुझे दामन दिखा देना

मेरी हर ख्वाइशें धूमिल हुईं तेरी मोहब्बत में
बस एक एहसान कर,ये नाम इस दिल से मिटा देना

हजारों यार मिल जाये सफ़र-ए-जिंदगानी में
न होगा इतना आसां यूँ किसी को फिर दगा देना

कोई शिकवा नहीं कि तूने मेरे दिल से खेला है
मगर इस खेल को अब नाम ना कोई वफ़ा देना

जलाकर आशियाँ खुश हैं मगर आंसू बहाते हैं
बहुत आसान है, इल्ज़ाम गैरों पर लगा देना

बहुत है ज़िन्दगी जी ली तेरी बेदर्द दुनियां में
यूँ जीने से ये बेहतर है,ख़ुदा मुझको क़ज़ा देना

विदा लेता है यारों आज तेरी बज़्म से ‘कुंदन’
मैं जब भी याद आऊं तुम मेरी ग़ज़लों को गा देना

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