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गुनाहें मैं नहीं करता, मगर अफ़सोस होता है ..

मेरी रचनाएँ
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गुनाहें मैं नहीं करता, मगर अफ़सोस होता है
सियासत का यही किस्सा यहाँ हर रोज़ होता है !

ख़ुशी से कल तलक नन्ही सी चिड़िया खूब गाती थी
न जाने आज क्यों उसके स्वरों में रोष होता है

बड़ा नादान था, ईमान की बातें सुना बैठा
वो पागल है,यहाँ चारों तरफ यह शोर होता है

पकड़ कर उँगलियाँ जिनकी सफ़र करता रहा है वो
शिकायत है उसे, माँ-बाप का क्यों बोझ होता है

न जाने कौन सी खुश्बू है फैली इन हवाओं में
ज़रा सा सांस लेलूँ तो ये दिल मदहोश होता है

बरत कर एह्तियातें तू हमेशा पैर रख ‘कुन्दन’
यहाँ इस रास्ते में हर जगह एक मोड़ होता है !

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