मेरी रचनाएँ
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जिसे देखो वही दिल से यहाँ पर खेल जाता है
शराफत का पुजारी आज अक्सर जेल जाता है
जो कल तक दूसरों को धर्म की बातें बताता था
वो कुछ सिक्कों के ख़ातिर अपना ईमां बेच जाता है
घरों की देवियाँ सजती हैं अक्सर अब दुकानों में
कि हर ख़रीदार आकर ये सजावट देख जाता है
ज़रा सी दौलतें पायी ख़ुदा खुद को समझ बैठा
बड़े गुमान से रोटी के टुकड़े फेंक जाता है
जो कल तक हर घडी रहता था लिपटा माँ की आँचल से
वो बेटा आज माँ को छोड़कर परदेस जाता है
कि कल तक छाँव में जिसकी वो थक कर रोज़ सोते थे
उन्ही हाथों से काटा आज हर इक पेड़ जाता है
बदलते वक़्त का किस्सा बयां करता है ये ‘कुन्दन’
यहाँ हर एक गली से अब गुज़रता शेर जाता है !
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