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दुखों का बोझ यूँ सह-सह के बौना हो गया हूँ म

मेरी रचनाएँ
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दुखों का बोझ यूँ सह-सह के बौना हो गया हूँ मैं,
सभी खेले मेरे दिल से खिलौना हो गया हूँ मैं
क़हर जो वक़्त का बरपा यकायक मेरी राहों में,
कि कल था काफ़िलों में आज तनहा हो गया हूँ मैं
मुक़द्दर से ज़ियादा कोई भी इंसाँ नहीं पाता
यही इक बात है जिससे आशुफ़्ता हो गया हूँ मैं
मुझे दौलत-ओ-शोहरत की तमन्ना है
नहीं कोई,
कि इस से दूर रह-रह कर फकीरा हो गया हूँ मैं
ख़बर आयी मोहल्ले में हुआ मर कर कोई जिंदा,
करिश्मा ये ख़ुदा का देख हैराँ हो गया हूँ मैं
मेरे कुछ शेर हैं ऐसे जो समझाए नहीं जाते,
कोई समझे तो ये समझे दीवाना हो गया हूँ मैं
बड़ी ख़ामोशियों से जब
सभी की बात सुनता हूँ,
ज़माना ये समझता है कि गुंगा हो गया हूँ मैं
हसीं कुछ ख्वाब दिखलाकर उन्हें, मैं मौज करता हूँ
अचानक ये कहा दिल ने कि नेता हो गया हूँ मैं
ना कोई दोस्त-ओ-दुश्मन तेरा अब है यहाँ ‘कुन्दन’
कि ख़ुद ही आज हर रिश्ते का हिस्सा हो गया हूँ मैं

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