मेरी रचनाएँ
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ख़ुशी के रंग बिखराओ कि होली आज आई है
ग़मों को भूल कर आओ कि होली आज आई है
यहाँ बस्ती में कोई रंग से ताल्लुक नहीं रखता
ये कालापन हटा जाओ कि होली आज आई है
बुराई दूर करने से ये रंगें आप बनती हैं
सभी मिलकर क़सम खाओ कि होली आज आई है
कई चेहरे हैं जिनको रंग कोई भी नहीं भाता
उन्हें रंगीन कर आओ कि होली आज आई है
हटा दो धर्म-मजहब की खड़ी दिल पर ये दीवारें
तो मिल के गीत यह गाओ कि होली आज आई है
सभी रंगें अगर मिल जाए तो उजला ही बनता है
उजाला मिल के फैलाओ कि होली आज आई है
ना कर परवाह ‘कुंदन’ की तेरा बेरंग चेहरा है
कभी गैरों को रंग जाओ कि होली आज आई है
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