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कहाँ गई दिवाली ?

मेरी रचनाएँ
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कई दिनों से सोच रहा था दिवाली पर कुछ लिखूं परंतु एक दुसरे ख़याल ने रोक रखा था और वैसे भी आज-कल लेखों का महत्व नहीं रहा ,फिर भी आदत से मजबूर हूँ कलम चल पड़ी l
आज कल सोशल मिडिया पर ”क्रेकर फ्री दिवाली” का मुद्दा ज़ोरों पर है कई इसके समर्थक हैं और कई लोग विरोध भी कर रहे हैं l सबसे अहम् बात यह है कि इन बहस के पीछे उनका कोई धार्मिक मकसद नहीं है बल्कि बदले की भावना है, खैर छोड़िये इन बातों को …हम कुछ अलग बात करते हैं l
बचपन में हम दीपावली के बारे में अनेक कहानियां सुन चुके हैं मसलन- श्री राम के वापस अयोध्या आने पर दिवाली मनाई गयी..आदि l आज हम बड़े हो चुके हैं सही-गलत का निर्णय हम स्वयं ले सकते हैं और यही कारण है कि अब हमें किसी कहानी की आवश्यकता नहीं होती और न ही बड़े सुनाते हैं l दिवाली वह त्यौहार है जो हर घर में रौशनी लाता है, यह अंधकार पर प्रकाश की जीत को दर्शाता है और इसी वजह से लोग दीपों की पंक्ति को सजाकर जलाने लगे और इसे “दीपावली” का नाम दिया गया l
पुराने ज़माने में सारा गाँव दिवाली मनाता था पर अब दिवाली ‘’घरों’’ में होती है अर्थात हम अपने तक सिमट कर रह गए हैं दुसरे शब्दों में यह कहें कि हम स्वार्थी हो चुके हैं l अब आप कहेंगे इसमें स्वार्थ कैसा हम तो अब भी घर के बाहर ही दिवाली मनाते हैं, जी हाँ आप बिलकुल सही हैं पर यही बात आपको स्वार्थी बनाती है l क्या आप जानते हैं कि जब आप तेज आवाज वाले बम व पटाखे छोड़ते हैं तो कई लोगों को पीड़ा पहुँचती है और उनमे कई दिल के मरीज़ होते हैं इसके अलावा बूढ़े ,बच्चे सभी थर्रा उठते हैं और उनकी दिवाली की रात बहुत दर्द्नाक बन जाती है l पशु-पक्षी की तो बात ही छोडिये ..हर धमाकों से वो सिहर उठते हैं और बेचैन होकर उड़ने लगते हैं l
हर शहर में एक ऐसा तबका होता है जो अपनी ज़िन्दगी सड़कों (फूटपाथ) पर बिताते हैं और उनके बच्चे भी उनसे पटाखे और मिठाईयाँ मांगते हैं जो हर बच्चे का अधिकार है l प्रदूषण मुक्त दिवाली का ज्ञान ना देते हुए मैं आपसे इतनी गुजारिश करता हूँ कि पटाखे पर रुपये ना खर्च करके उन पैसों से मिठाईयां खरीदकर सड़कों पर बसे लोगों के साथ दिवाली मनाईये..भले ही अन्य चीजों में आज गारंटी नहीं मिलती पर मैं आपको इस बात की पूरी गारंटी देता हूँ कि यह पल आपकी पूरी ज़िन्दगी का सबसे सुखद पल होगा ..और हाँ अगर आप ऐसा नहीं कर रहे हैं, कोई बात नहीं पर तेज़ धमाकों वाली बम का इस्तेमाल नहीं करें ..क्योंकि अगर हम किसी को सुख नहीं दे सकते तो हमें उनकी ख़ुशी छीनने का भी कोई हक़ नहीं है –
”मैं ये नहीं कहता कि औरों के घर दिए जलाओ,
मेरी इल्तज़ा है कि किसी के घर का ‘दिया’ न बुझे”
व्यक्तिगत तौर पर मुझे दिवाली कहीं नहीं मिल रही है ..बस हर जगह धमाकों की आवाजें ..क्या आपने देखी है ..अगर नहीं तो मिल कर खोजें हमारी खोई दिवाली ..आख़िर कहाँ गई दिवाली ?

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